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चाँद अकेला है / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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05:09, 13 फ़रवरी 2019
आँसू भीगी पलकें, उलझी हैं अब अलकें
आँसू
पोछे
पोंछे
,सुलझा दे अब हाथ न सम्बल के
'''उलझन में हरदम जीवन छूटा मेला है।'''
'''पलभर को रुका नहीं आँसू का रेला है ।'''
<poem>
वीरबाला
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