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04:53, 18 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
प्यास में तृप्ति की बूँद भरती नहीं
बदलियाँ नीर लेकर उमड़ती नहीं
हो गया जल स्वयं है प्रदूषण भरा
आज गंगा नदी पाप हरती नहीं
हो रही हैं सजग अस्मिता के लिये
नारियाँ धृष्ट के पाँव पड़ती नहीं
रत्न मोती जवाहर सभी व्यर्थ हैं
भावना तो अंगूठी में जड़ती नहीं
कृष्ण प्यारे तिहारे निहारे बिना
ज़िन्दगानी किसी की सँवरती नहीं
</poem>