भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्यास में तृप्ति की बूँद भरती नहीं / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
प्यास में तृप्ति की बूँद भरती नहीं
बदलियाँ नीर लेकर उमड़ती नहीं
हो गया जल स्वयं है प्रदूषण भरा
आज गंगा नदी पाप हरती नहीं
हो रही हैं सजग अस्मिता के लिये
नारियाँ धृष्ट के पाँव पड़ती नहीं
रत्न मोती जवाहर सभी व्यर्थ हैं
भावना तो अंगूठी में जड़ती नहीं
कृष्ण प्यारे तिहारे निहारे बिना
ज़िन्दगानी किसी की सँवरती नहीं