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05:33, 19 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
फ़लसफ़े सब नये हो गये
भोर के हम दिये हो गये
फिर है मौसम बदलने लगा
फूल पत्ते नये हो गये
लग रहे इतने आरोप हैं
काम सब अनकिये हो गये
हर तमन्ना अधूरी रही
लोग आये गये हो गये
हम उधारी में मुस्कान की
दर्द के हाशिये हो गये
</poem>