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फ़लसफ़े सब नये हो गये / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
फ़लसफ़े सब नये हो गये
भोर के हम दिये हो गये
फिर है मौसम बदलने लगा
फूल पत्ते नये हो गये
लग रहे इतने आरोप हैं
काम सब अनकिये हो गये
हर तमन्ना अधूरी रही
लोग आये गये हो गये
हम उधारी में मुस्कान की
दर्द के हाशिये हो गये