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{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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<poem>
है उषा मुख से घूँघट हटाने लगी
प्रात की रश्मि है झिलमिलाने लगी

भोर है हो गई लोग कहने लगे
पंखुरी फूल की कसमसाने लगी

फिर घिरे बादलों ने कहा झूम कर
बूँद की हर झड़ी दिल लुभाने लगी

घंटियाँ मंदिरों की लगी नाचने
आरती धुन मधुर गुनगुनाने लगी

तोड़ बंधन जमाने के अनुराग के
राधिका श्याम से लौ लगाने लगी

</poem>