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|रचनाकार=सुमन ढींगरा दुग्गल
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<poem>
हिज्र का आप पे साया नहीं रहने देंगे
आपको हम कभी तन्हा नहीं रहने देंगे

हम ख्यालों से तेरे कैसे निकल पायेंगे
ये कभी हमको अकेला नहीं रहने देंगे

छाये रहते हैं तेरी याद के बादल हर दम
खुशक़ ये आँख का दरिया नहीं रहने देंगे

जो मेरी जागती आँखों को दिखाये तूने
ख्वाब आँखों को वो तन्हा नहीं रहने देंगे

खूबसूरत है जहां कितना तेरा ए मालिक
पर ये बंदे इसे वैसा नहीं रहने देंगे

अब तअस्सुब की हवाओं के ये ज़ालिम झोंके
आपसी प्यार हमारा नहीं रहने देंगे

जिन लुटेरों को खजाने पे बिठा रक्खा है
ये किसी जेब में पैसा नहीं रहने देंगे

गुलशने हिंद में कुछ ऐसे शिकारी हैं 'सुमन '
जो यहाँ कोई परिंदा नहीं रहने देंगे
</poem>