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<poem>
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खाए हैं घाव
चलो उनको धो लें
गले से लगकर
जीभर हम रो लें।
7हज़ारों मिलेपथ में मीत हमेंचुपके से खिसकेतुम-सा न थासाथ निभाने वालालौटके आने वाला ।82
राह हमारी
ये रोकेंगे सागर
खुशबू बनने को
फूलों -सा खिलना है ।
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पास जो बैठे
वे मीलों दूर रहे
कोसों दूर हो तुम
फिर भी पास लगे ।
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ईर्ष्या का चक्र
सिर पर सवार