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छुपा है चाँद / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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1
खाए हैं घाव
चलो उनको धो लें
दु:ख के पन्ने खोलें
करता है जी
गले  से लगकर 
जीभर हम रो लें।
2
राह हमारी
ये रोकेंगे सागर 
फिर भी मिलना है;
तेरे दिल की
खुशबू बनने को
फूलों -सा खिलना है ।
3
पास  जो बैठे
वे मीलों दूर रहे 
उनसे क्या शिक़वा !
माना हमसे
कोसों दूर हो तुम
फिर भी पास लगे ।
4
ईर्ष्या का चक्र
सिर पर सवार
बही लोहित धार 
कुछ न पाया
बैचैनी सदा मिली
सब कुछ गँवाया ।
	
	