534 bytes added,
12:26, 29 नवम्बर 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजेन्द्र देथा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मूक आवाजें
कितनी सुरीली होती है
यह मैंने
इन्हीं
दिनों सीखा है
तुमसे
फिर हाथोहाथ भेज दिया छपनेt इसे
"दुनिया के सबसे बड़े विरोधाभास के रूप में!
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader