भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मूक आवाजें / राजेन्द्र देथा
Kavita Kosh से
मूक आवाजें
कितनी सुरीली होती है
यह मैंने
इन्हीं
दिनों सीखा है
तुमसे
फिर हाथोहाथ भेज दिया छपनेt इसे
"दुनिया के सबसे बड़े विरोधाभास के रूप में!