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<poem>
पल-पल चल तू
चल अपने बल
मत बन निर्बल
तन-तन के चल

डर मत,मत डर
डट के डग भर
बढ़ रे चढ़ तू
ऊपर-ऊपर

मिल-जुल के चल
चल दल के दल
समझो चल के
छलिया का छल

हक तक बढ़ तू
हिम्मत कर तू
धीरज से लड़
धक-धक मत कर

खल के बल से
मत टल मत टल
लड़-चढ़ दल के
पाले सब हल

अब तो चल-चल
मत कर कल-कल
लड़-लड़ घर-घर
तू समता भर

हट मत नट मत
चल तू झट-पट
चल सुलझा दें
भारत के लट

खट रे खट तू
मत कर लट-पट
चल रे खोलें
सुख के सब पट

मत को समझो
जानो बहुमत
मत बेंचो मत
खुद को मत हत

चल रे दल रे
रावण के दल
चल-चल-चल रे
दल के दल चल
</poem>
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