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12:58, 13 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
ज़िन्दगी क़ैद से भी बद-तर है
कब मिलेगी निजात क्या कहिये
हर कदम हादिसा है, महशर है
ज़िन्दगी क़ैद से भी बद-तर है
जाने-कितने युगों का चक्कर है
वारदातें-हयात क्या कहिये
ज़िन्दगी क़ैद से भी बद-तर है
कब मिलेगी निजात क्या कहिये।
</poem>