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{{KKRachna
|रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान / सुरेन्द्र डी सोनी
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<poem>
प्रतीक्षा –
जैसे सीने से उठती भाप
ना कहेगी, हाँ कहेगी
या कुछ न कहेगी...
कौन ?
जाने आशाओं के महल का दरबान

आँखें –
जैसे घनीभूत दो बादल
बरसना है चुपचाप जिन्हें
आँचल के भीतर-भीतर...
किसके ?
जिसे देखा नहीं अभी

औत्सुक्य –
जैसे कस्तूरी की गंध
नाप लेने की जिद सारे जंगल को
सर्जन की यह उड़ान
कहाँ तक ?
जाने हरिण के पाँव

अनुभव –
अनिवर्चनीय जैसे कविता...
धरती पर खुलते पन्ने
एक महाकाव्य के...
परिणाम
जन्मों की पीर का !
</poem>
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