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12:03, 21 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सोनरूपा विशाल
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
समझते थे जो समझाया गया है
हमें हमसे ही मिलवाया गया है
जो बोलें उसको पहले तोल लें हम
हमें व्यापार सिखलाया गया है
कभी एहसान कोई कर गया है
बराबर याद दिलवाया गया है
हमारे हाथ ख़ाली रह गए फिर
हमें बच्चों सा बहलाया गया है
था जब मौसम सही रोका गया तब
हमें आँधी में दौड़ाया गया है
हमारे नाम के हिस्से को क्यूँ कर
किसी के नाम लिखवाया गया है
</poem>