भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमें हमसे ही मिलवाया गया है / सोनरूपा विशाल
Kavita Kosh से
समझते थे जो समझाया गया है
हमें हमसे ही मिलवाया गया है
जो बोलें उसको पहले तोल लें हम
हमें व्यापार सिखलाया गया है
कभी एहसान कोई कर गया है
बराबर याद दिलवाया गया है
हमारे हाथ ख़ाली रह गए फिर
हमें बच्चों सा बहलाया गया है
था जब मौसम सही रोका गया तब
हमें आँधी में दौड़ाया गया है
हमारे नाम के हिस्से को क्यूँ कर
किसी के नाम लिखवाया गया है