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05:48, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
{{KKCatRubaayi}}
<poem>
सूरज के चक्कर में आकर सब लोग
भूले फिरते हैं अपना घर सब लोग
सहमे सहमे अंधियारे पूछें है
आखिर क्यों फिरते हैं दर दर सब लोग।
</poem>