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|रचनाकार=मृदुल कीर्ति}}
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<span class="upnishad_mantra">
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<span class="mantra_translation">
जो तीन मात्रायुक्त ॐ के भू, भुवः स्वः रूप के,<br>
चिन्तक वे पाते एक अक्षर से ही, सुख रवि भूप के।<br>
ज्यों सर्प केंचुल से पृथक, त्यों पाप कर्म से मुक्त हों,<br>
वह साम मंत्रो से लोक रवि, व् ब्रह्म लोक से युक्त हो॥ [ ५ ]<br><br>
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<span class="upnishad_mantra">
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<span class="mantra_translation">
ओंकार की मात्राएँ तीनों 'अ' 'उ' 'म' का पृथक या,<br>
संयुक्त रूप प्रयुक्त जिसने भी मनन चिंतन किया।<br>
दोनों ही विधि से मृत्यु मय चिर अमर व् शाश्वत नहीं,<br>
जो बाह्य अन्तः मध्य हैं, ओंकार मय अमृत वही॥ [ ६ ]<br><br>
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<span class="upnishad_mantra">
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<span class="mantra_translation">
एक मात्रा साधक ऋग, ऋचा के पुण्य से भू लोक का,<br>
द्वि मात्रा साधक यजुः ऋचा के पुण्य से शशि लोक का।<br>
त्रि मात्रा साधक साम गान के, पुण्य से दिवि लोक का,<br>
पर ॐ अवलंबन जिसे, सुख पाते शाश्वत लोक का॥ [ ७ ]<br><br>
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