Changes

ये मोड़ वो हैं कि परछाइयाँ देगी न साथ.
मुसाफ़िरों से कहो, उसकी रहगुज़र आई.
 
फ़ज़ा तबस्सुमे-सुबह-बहार थी लेकिन.
शबे-'फिराक़'उठे दिल में और भी कुछ दर्द.
कहूँ मैं कैसे,तेरी याद रात भर आई.
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,373
edits