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केही प्रेम गरेँ, केही कर्म गरेँ / फैज अहमद फैज / सुमन पोखरेल
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10:00, 27 नवम्बर 2020
दिक्क भएर अन्तत: मैले
दुईटैलाई अपूरै छोडिदिएँ।
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'''[[कुछ इश्क़ किया, कुछ काम किया / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़|इस कविता का मूल उर्दू/हिंदी पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें]]'''
</poem>
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