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|रचनाकार=अनामिका सिंह 'अना'
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<poem>
परिधि तुम्हारे पंखों की लो
रहे हितैषी खींच
चिरैया बचकर रहना ।

रूढ़िवाद की पैरों में मिल
बेड़ी डालेंगे ।
तेरे चिन्तन में पगली ये
आग लगा देंगे ।

रखें चरण दस्तार न झूठे
लें न प्रेम से भींच
चिरैया बचकर रहना ।

जगत हँसाई का कानों में
मन्तर फूँकेंगे ।
करने वश में तुझे नहीं ये
जन्तर चूकेंगे ।

छल के हारिल करके धोखा
देंगे आँखें मींच
चिरैया बचकर रहना ।

साँसें कितनी ली हैं कैसे,
बही निकालेंगे ।
चाल-चलन की पोथी-पत्री
सभी खँगालेंगे ।

संघर्षो से हुई प्रगति पर,
उछल न जाए कीच
चिरैया बचकर रहना ।
</poem>
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