1,460 bytes added,
10:01, 21 मई 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अनामिका सिंह 'अना'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
परिधि तुम्हारे पंखों की लो
रहे हितैषी खींच
चिरैया बचकर रहना ।
रूढ़िवाद की पैरों में मिल
बेड़ी डालेंगे ।
तेरे चिन्तन में पगली ये
आग लगा देंगे ।
रखें चरण दस्तार न झूठे
लें न प्रेम से भींच
चिरैया बचकर रहना ।
जगत हँसाई का कानों में
मन्तर फूँकेंगे ।
करने वश में तुझे नहीं ये
जन्तर चूकेंगे ।
छल के हारिल करके धोखा
देंगे आँखें मींच
चिरैया बचकर रहना ।
साँसें कितनी ली हैं कैसे,
बही निकालेंगे ।
चाल-चलन की पोथी-पत्री
सभी खँगालेंगे ।
संघर्षो से हुई प्रगति पर,
उछल न जाए कीच
चिरैया बचकर रहना ।
</poem>