भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिरैया बचकर रहना / अनामिका सिंह 'अना'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

परिधि तुम्हारे पंखों की लो
रहे हितैषी खींच
चिरैया बचकर रहना ।

रूढ़िवाद की पैरों में मिल
बेड़ी डालेंगे ।
तेरे चिन्तन में पगली ये
आग लगा देंगे ।

रखें चरण दस्तार न झूठे
लें न प्रेम से भींच
चिरैया बचकर रहना ।

जगत हँसाई का कानों में
मन्तर फूँकेंगे ।
करने वश में तुझे नहीं ये
जन्तर चूकेंगे ।

छल के हारिल करके धोखा
देंगे आँखें मींच
चिरैया बचकर रहना ।

साँसें कितनी ली हैं कैसे,
बही निकालेंगे ।
चाल-चलन की पोथी-पत्री
सभी खँगालेंगे ।

संघर्षो से हुई प्रगति पर,
उछल न जाए कीच
चिरैया बचकर रहना ।