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{{KKRachna
|रचनाकार=विवेक चतुर्वेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=स्त्रियाँ घर लौटती हैं / विवेक चतुर्वेदी
}}
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<poem>
दिन
एक पहाड़ है
सूरज है
सुबह की चाय
साँझ
पहाड़ के पार
एक झील है
रात है
उसमें डूब के
मर जाना ।।
</poem>