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रोज़ / विवेक चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
दिन
एक पहाड़ है
सूरज है
सुबह की चाय
साँझ
पहाड़ के पार
एक झील है
रात है
उसमें डूब के
मर जाना ।।