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04:28, 23 जुलाई 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रेखा राजवंशी
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|संग्रह=
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<poem>
कुछ ज़ख्म छिपाए बैठे हैं
कुछ दर्द दबाए बैठे हैं
सूखे फूलों की ख़ुशबू में
कुछ ख़्वाब सजाए बैठे हैं
वो शायद वापिस आ जाएँ
ख़ुद को समझाए बैठे हैं
ये दिल है संगोख़िश्त नहीं
क्यों ग़म ये लगाए बैठे हैं
इन बेगानों की बस्ती में
क्या बीन बजाए बैठे हैं
अँधियारा डस लेगा मन को
इक दीप जलाए बैठे हैं
</poem>