भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूखे फूल / रेखा राजवंशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ ज़ख्म छिपाए बैठे हैं
कुछ दर्द दबाए बैठे हैं

सूखे फूलों की ख़ुशबू में
कुछ ख़्वाब सजाए बैठे हैं

वो शायद वापिस आ जाएँ
ख़ुद को समझाए बैठे हैं

ये दिल है संगोख़िश्त नहीं
क्यों ग़म ये लगाए बैठे हैं

इन बेगानों की बस्ती में
क्या बीन बजाए बैठे हैं

अँधियारा डस लेगा मन को
इक दीप जलाए बैठे हैं