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{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश रंजक
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|संग्रह=दरिया का पानी / रमेश रंजक
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<poem>
घटिया सी एक शराब है शातिर की दोस्ती ।
सीने का एक घाव है शातिर की दोस्ती ।।

अपनी ज़मीर, अपनी ज़मी, देख कर चलो ।
मतलब का इक पड़ाव है शातिर की दोस्ती ।।

छोटी सी एक बात पर रख देगा तोड़ कर ।
बनिये का भाव-ताव है शातिर की दोस्ती ।।

उसकी फरेबदार जुबाँ पर न जाइए —
नेता का इक चुनाव है शातिर की दोस्ती ।।

जितना यक़ीन करते गए डूबते गए ।
टूटी सी एक नाव है शातिर की दोस्ती ।।

सम्बन्ध टूटने के बाद कहते फिरोगे —
नासूर का रिसाव है शातिर की दोस्ती ।।
</poem>
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