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14:16, 4 अक्टूबर 2021 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=बात बोलेगी / शमशेर बहादुर सिंह
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<poem>
'''अल्जीरियाई वीरों को समर्पित, 1961'''
लगी हो आग जंगल में कहीं जैसे,
हमारे दिल सुलगते हैं ।
हमारी शाम की बातें
लिए होती हैं अक्सर ज़लज़ले महशर के; और जब
भूख लगती है हमें तब इंक़लाब आता है ।
</poem>