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{{KKRachna
|रचनाकार=फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का
|अनुवादक=तनुज कुमार
|संग्रह=
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<poem>
चार चन्द्रमा वाली रातें
और सिर्फ़ एक दरख़्त
सिर्फ़ एक परछाई
और एक पँछी

अपने बदन से
महसूस करता हूँ
तुम्हारे होठों का स्पर्श

झरना हवाओं को चूमता है
जैसे
बिना उसे छुए

मैं सहता हूँ,
वह इनकार जो
तुमने मुझे दिए थे
मेरी मुट्ठियों में बन्द,
सुरक्षित रख,
ठीक जम चुके मोम की तरह
लगभग सफ़ेद

चार चन्द्रमा वाली रातें
और सिर्फ़ एक दरख़्त

मेरा प्रेम
चक्कर लगा रहा है
सुई की एक नोंक के ऊपर...

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : तनुज कुमार'''
</poem>
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