भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वह तड़के सुबह मरा / फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का / तनुज कुमार
Kavita Kosh से
चार चन्द्रमा वाली रातें
और सिर्फ़ एक दरख़्त
सिर्फ़ एक परछाई
और एक पँछी
अपने बदन से
महसूस करता हूँ
तुम्हारे होठों का स्पर्श
झरना हवाओं को चूमता है
जैसे
बिना उसे छुए
मैं सहता हूँ,
वह इनकार जो
तुमने मुझे दिए थे
मेरी मुट्ठियों में बन्द,
सुरक्षित रख,
ठीक जम चुके मोम की तरह
लगभग सफ़ेद
चार चन्द्रमा वाली रातें
और सिर्फ़ एक दरख़्त
मेरा प्रेम
चक्कर लगा रहा है
सुई की एक नोंक के ऊपर...
अँग्रेज़ी से अनुवाद : तनुज कुमार