1,404 bytes added,
10:48, 9 अक्टूबर 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अदिति वसुराय
|अनुवादक=लिपिका साहा
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
क्या लिखूँ चुपके से ?
या फिर रुठकर हर रोज़ मरती रहूँ
पुराने पोखर में ?
क्या कह दोगे तुम ?
तीर तुम्हारा निशाने पर नहीं बैठता, राजमार्ग पर जोकर नहीं
सुनसान पुस्तक-मेला
क्या है तुम लोगों के पास ?
मैं सदा से देवताओं की प्रिय सखी रही
पर हर रोज़ मैं फ़सल उगाने में
होती हूँ नाकामयाब ।
क्या है छिपा ?
जो शहनाई बजी थी — जल चुकी है ।
बनारसी साड़ी सड़ गई है कबकी ।
दूँ भी क्या मैं तुम्हें ?
परमेश्वर के गेह से ला पाई हूँ
यह मामूली जिस्म
ग्रहण करोगे ?
'''मूल बांगला से अनुवाद : लिपिका साहा'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader