Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बैर्तोल्त ब्रेष्त |अनुवादक= उज्ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक= उज्ज्वल भट्टाचार्य
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita‎}}
<Poem>
'''1'''

जब प्रचार मंत्री जनता की तकलीफ़ की बात करता है
बेचैनी से वह अपना माथा थाम लेता है और चारों ओर शोर मच जाता है :
हमारे फ़्युहरर के
बाल पकते जा रहे हैं ।

'''2'''

जब चांसलर रेडियो पर चिंघाड़ता है
लोग कहते हैं : कितनी मेहनत कर रहे हैं !
पर चूंकि उन्हें दिनभर मेहनत ही करनी पड़ी थी
वे ख़ुद चिंघाड़ नहीं पाते हैं ।

'''3'''

सबको पता चल जाता है : आनेवाले युद्ध के चलते
चांसलर की नींद हराम है ।
काश ! अगर
चांसलर चैन की नींद सोता
तो कोई युद्ध ही न होता ?

'''4'''

पड़ोस के देश
हिकारत के साथ हमारे मुल्क की बात करते हैं
आर्थिक बदहाली व हिंसा की
वे ज़ोरदार ढंग से निन्दा करते हैं ।
कहा जाता है, विदेशी अख़बार पढ़ने के बाद चांसलर अक्सर रो पड़ते हैं ।
फिर प्रचार मंत्री जनता से मांग करता है
वह उसके आँसू पोंछ डाले ।

'''5'''

जब चांसलर ने अपने दोस्तों को भी हलाक़ कर दिया
क्योंकि उसकी जेब भरनेवाले ऐसा चाहते थे
तो उसका चेहरा संजीदा हो गया ।
लोग जब भूखे पेट होते हैं
उसके पेट में दर्द होने लगता है ।

'''6'''

यह तय है कि जब वह मुल्क को युद्ध में झोंक देगा
वह बच्चों की तरह रोने लगेगा ।
जब तुम्हारे बच्चे और मर्द मैदान में खेत रहेंगे
अफ़सोस के साथ वह गहरी सांस लेगा ।
जब तुमको घास खाकर जीना पड़ेगा
संजीदगी के साथ वह तुम्हें देखेगा ।
और तुम्हें पता चल जाएगा
तुम्हें एक अच्छा चांसलर मिला है ।

'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,616
edits