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<poem>
लोग किस रंग में नहाए हैं 
हम तो दामन बचा के आए हैं 

सुर्ख़ होगा तो ख़ून ही होगा 
शाह-ओ-सुल्तान ने बहाए हैं 

आप ही तख़्त पे बिठाते हैं 
आसमाँ सर पे क्यूँ उठाए हैं 

भूख दौलत के साथ रहती है 
वक़्त ने फ़लसफ़े सिखाए हैं 

तुम समन्दर के पार आए थे 
हम भी दर्रे से पार आए हैं

ज़लज़ले बेवजह नहीं आते  
झगड़े तहज़ीब ने दबाए हैं 

सच यही है कि झूठ कुछ भी नहीं 
ख़ल्क़ ने फ़ैसले सुनाए हैं
</poem>
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