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00:51, 17 नवम्बर 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक= उज्ज्वल भट्टाचार्य
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
फ़िलहाल नहीं है कोई शिकायत
कमाई हो जाती है हर रोज़
अब तक
जो ढोता रहा
हमारा बोझ
संभालता रहेगा
अब भी वो हमारी हालत ।
अब तक हमने
यही है सीखा
बिना यह पूछे क्यों और कैसा
लेकिन ऐसा किसने लिखा
वही दिखेगा,
जो अब तक दिखा ?
शायद, शायद
वो दिन आए जब रहे न ऐसा ?
'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य'''
</poem>