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{{KKRachna
|रचनाकार=बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक= उज्ज्वल भट्टाचार्य
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<Poem>
मैं शिक्षक हूँ
लेकिन मुझे कौन सिखाएगा ?
मुझे कैसे पता चले, वे क्या सिखलाना चाहते हैं ?

मेरे इरादे अच्छे हैं, तैयार हूँ, सबकुछ सीखने को
कसाइयों की इज़्ज़त करनी है
लेकिन हर कसाई की तो नहीं ?
किसकी नहीं करनी है?

शायद
मैं मात खा चुका हूँ : मैंने
फ़्युहरर को सिर्फ़ एक महान शख़्स कहा ।

मैं कोई कसर बाकी नहीं रखता, लेकिन
आख़िर इनसान हूँ और ग़लतियाँ हो ही जाती हैं ।

'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य'''
</poem>
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