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09:19, 25 नवम्बर 2021 {{KKRachna
|रचनाकार=निर्मल 'नदीम'
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
शोख़ी ए दर्द ए दिल ए ज़ार गुल ए नग़मा है,
उसका हर लहजा ए गुफ़्तार गुल ए नग़मा है।
सोई सोई सी ख़लाओं को हम आगोश करो,
कुलजुम ए ज़ख़्म से बेदार गुल ए नग़मा है।
ख़्वाब ए इमकान ए वफ़ा है वो मुजस्सम कोई,
हम हुए जिसके परस्तार गुल ए नग़मा है।
चांदनी की है नई शमअ ए शगुफ़्ता पुरनूर,
सर ता पा इश्क़ का शहकार गुल ए नग़मा है।
चांद, सूरज, ये सितारे हैं शरारे उसके,
उसकी अंगड़ाई तो अनवार ए गुल ए नग़मा है।
शश जेहात इसके हैं औराक़ ज़िया ओढ़े हुए,
मुस्कराता हुआ संसार गुल ए नग़मा है।
मौज दर मौज बदन करता है जादू जैसे,
हर अदा उसकी पुर असरार गुल ए नग़मा है।
आईने सी है वो दोशीज़ा मुहब्बत की मिसाल,
होंट शोला है तो रुख़सार गुल ए नग़मा है।
रिश्ता ए रूह ने बांधा है हमें कस के नदीम,
मैं कलंदर हूँ मेरा यार गुल ए नग़मा है।
</poem>