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<poem>
नदी होकर नदी में डूबने की
चलो कोशिश करें कुछ ढूँढने की

मैं साबित हूँ अभी भी आइनों में
सदा आई ये किसके टूटने की

मुझे देखा तो पत्थर हो गया वो
मनाही थी पलट कर देखने की

हवा हो या ज़मीं या आसमाँ हो
तुझे कुछ ज़िद है सबसे जूझने की

कहाँ से लाऐंगी तुझको ये आँखें
तमन्ना जब भी होगी देखने की

तू गुज़रा वक़्त है, फिर भी बता जा
मैं कब तक राह देखूँ लौटने की
</poem>
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