भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नदी होकर नदी में डूबने की / सुरेश कुमार
Kavita Kosh से
नदी होकर नदी में डूबने की
चलो कोशिश करें कुछ ढूँढने की
मैं साबित हूँ अभी भी आइनों में
सदा आई ये किसके टूटने की
मुझे देखा तो पत्थर हो गया वो
मनाही थी पलट कर देखने की
हवा हो या ज़मीं या आसमाँ हो
तुझे कुछ ज़िद है सबसे जूझने की
कहाँ से लाऐंगी तुझको ये आँखें
तमन्ना जब भी होगी देखने की
तू गुज़रा वक़्त है, फिर भी बता जा
मैं कब तक राह देखूँ लौटने की