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21:27, 12 दिसम्बर 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निकानोर पार्रा
|अनुवादक=उज्ज्वल भट्टाचार्य
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
मैं ख़त्म करने की बात नहीं करता हूँ
मुझे इस सिलसिले में कोई ग़लतफ़हमी नहीं है
मैं कविता लिखते रहना चाहता था
लेकिन प्रेरणा ख़त्म हो गई ।
कविता का बर्ताव ठीक-ठाक था
मेरा ही चलन बिल्कुल बेकार था ।
यह कहने से क्या फ़ायदा
कि मेरा बर्ताव ठीक था
और कविता की ही तमीज़ नहीं थी
जब सबको पता है कि ग़लती मेरी है ?
मूरख की क़िस्मत में यही रहता है !
कविता का बर्ताव ठीक-ठाक था
मेरा ही चलन बिल्कुल बेकार था
कविता मेरे साथ ख़त्म होती है ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य'''
</poem>
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