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{{KKRachna
|रचनाकार= बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक=सुरेश सलिल
|संग्रह=
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<Poem>
और मैं सोचा करता अक्सर :
बहुत आसान शब्द काफ़ी होंगे ।
जब मैं कहूँ —
कैसी हैं चीज़ें
हरेक का दिल चिन्दी-चिन्दी होगा ।
कि तुम रसातल में धँस जाओगेअँधेरेअगर पैर जमाए खड़े न रहे —