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17:53, 23 दिसम्बर 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कंस्तांतिन कवाफ़ी
|अनुवादक=असद ज़ैदी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
और अगर अपने जीवन को तुम वैसा न बना सको जैसा कि चाहते हो,
तो जहाँ तक तुम्हारा बस चले
उसे दुनिया से इतना सटाकर,
इतनी हलचल इतनी चकल्लस करके
नीचे न गिराओ ।
उसे गिराओ नहीं
अपने साथ घसीटकर,
हर जगह ले जाकर
रोज़मर्रा के कार्यक्रमों और
दावतों की अन्तहीन निरर्थकता में,
इस हद तक कि वह एक नीरस
पिछलग्गूपन में बदल जाए ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : असद ज़ैदी'''
</poem>