भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो तुम्हारे बस में है / कंस्तांतिन कवाफ़ी / असद ज़ैदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

और अगर अपने जीवन को तुम वैसा न बना सको जैसा कि चाहते हो,
तो जहाँ तक तुम्हारा बस चले
उसे दुनिया से इतना सटाकर,
इतनी हलचल इतनी चकल्लस करके
नीचे न गिराओ ।
उसे गिराओ नहीं
अपने साथ घसीटकर,
हर जगह ले जाकर
रोज़मर्रा के कार्यक्रमों और
दावतों की अन्तहीन निरर्थकता में,
इस हद तक कि वह एक नीरस
पिछलग्गूपन में बदल जाए ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : असद ज़ैदी