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06:26, 31 मार्च 2022 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=संतोष अलेक्स
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
मेरी कुछ ज़रुरतें हैं
तुम उनमें एक हो
तुम्हारी कुछ ज़रुरतें हैं
मैं उनमें एक हूँ
यह तुम्हें बताना है
माँ की कुछ ज़रुरतें हैं
मैं उनमें एक हूं
तुम उनमे एक हो
यह बताना माँ को है
बेटी की कुछ ज़रुरतें हैं
बेटे की भी ज़रुरतें हैं कुछ
इनकी जरूरत तुम्हारी और
माँ की ज़रुरतों से भिन्न है
पड़ोसी की भी अपनी ज़रुरतें हैं
मसलन गैस बुक करने के बाद
समय पर सिलैंडर न मिलने पर
बिना संकोच के खटखटाते हैं
दरवाजे हमारे
मेरी कुछ ज़रुरतें हैं
तुम सब कहीं न कहीं
ज़रुरत से ज्यादा ज़रुरी हो मेरे लिए
और मैं पूरा और भरा होता हूँ
<poem>