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21:13, 14 अप्रैल 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज जैन 'मधुर'
|अनुवादक=
|संग्रह=धूप भरकर मुट्ठियों में / मनोज जैन 'मधुर'
}}
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<poem>
भव-भ्रमण की वेदना से
मुक्ति पाना है ।
अब हमें निज गेह शिवपुर
को बनाना है ।
चार गतियों में निरन्तर कष्ट पाए हैं ।
चेतना को भूल जड़ के गीत गाए हैं ।
आत्म को निज-परिणिति में
अब रमाना है ।
खोजते हम सुख रहे
भौतिक शरीरों में ।
हर्ष हम ढूँढ़ा किए
मणि, रत्न, हीरों में ।
परम पद पाने हमें
अरिहन्त ध्याना है ।
</poem>