भव-भ्रमण की वेदना से
मुक्ति पाना है ।
अब हमें निज गेह शिवपुर
को बनाना है ।
चार गतियों में निरन्तर कष्ट पाए हैं ।
चेतना को भूल जड़ के गीत गाए हैं ।
आत्म को निज-परिणिति में
अब रमाना है ।
खोजते हम सुख रहे
भौतिक शरीरों में ।
हर्ष हम ढूँढ़ा किए
मणि, रत्न, हीरों में ।
परम पद पाने हमें
अरिहन्त ध्याना है ।