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भव-भ्रमण की वेदना / मनोज जैन 'मधुर'

भव-भ्रमण की वेदना से 
मुक्ति पाना है ।
अब हमें निज गेह शिवपुर 
को बनाना है ।

          चार गतियों में निरन्तर कष्ट पाए हैं ।
          चेतना को भूल जड़ के गीत गाए हैं ।

आत्म को निज-परिणिति में
अब रमाना है ।

          खोजते हम सुख रहे 
          भौतिक शरीरों में ।
          हर्ष हम ढूँढ़ा किए 
          मणि, रत्न, हीरों में ।

परम पद पाने हमें 
अरिहन्त ध्याना है ।