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{{KKRachna
|रचनाकार=बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक= उज्ज्वल भट्टाचार्य
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<Poem>
बार-बार मत बोलो, शिक्षक महोदय कि तुम्हारी बात ठीक है !
छात्र को समझने दो !

सच्चाई को ज़्यादा मत खींचो :
वह बर्दाश्त नहीं कर पाएगी ।

बोलते समय सुनो भी !

'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य'''
</poem>
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