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|रचनाकार=बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक= उज्ज्वल भट्टाचार्य
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<Poem>
शाम के झुटपुटे में लेटा रहा
चौंका फिर कुछ सुन
कोई भिखारी बजाता रहा
एक पुरानी धुन ।

आख़िर कौन बजा रहा
बाँसुरी पर यह धुन
सुन चुका हूँ पहले कहाँ
यह पुरानी धुन ?

भिखारी तो फिर चला गया
ख़ामोश हो गई रैन
लेकिन वह लूट ले गया
मेरा उम्र भर का चैन ।

'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य'''
</poem>
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