गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
जीवन-घट मिला; किन्तु रीता रहा / कविता भट्ट
4 bytes added
,
04:07, 15 जून 2022
{{KKCatKavita}}
<poem>
जाने क्यों हिचकियों में ही जीता रहा।
जानता सब था; फिर भी पीता रहा।
दूजा घूँट तो नियति हो गई।
'''
जीवन-घट मिला; किंतु रीता रहा।
'''
जानता सब था; फिर भी पीता रहा।
वीरबाला
4,963
edits