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उस सुदूर देश के बारे में गाती है  ये सोनचिरैया, 
जहाँ हिम-तूफ़ान के पार मुश्किल से झलक रहा है
एक अकेली क़ब्र का ढूह औ’ उसकी मिट्टी की ढैया, 
जिसके ऊपर उजला -बिल्लौरी हिम चमक रहा है
वहाँ कभी सुनाई न देती भुर्जवृक्ष की फुसफुसाहट
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