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18:02, 12 सितम्बर 2022 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=धर्मवीर भारती
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<poem>
ये अनजान नदी की नावें
जादू के से पाल
उड़ातीं
आतीं
मन्थर चाल ।
नीलम पर किरणों
की साँझी
एक न डोरी
एक न माँझी,
फिर भी लाद निरन्तर लातीं
सेन्दूर और प्रवाल !
कुछ समीप की
कुछ सुदूर की,
कुछ चन्दन की
कुछ कपूर की,
कुछ में गेरू
कुछ में रेशम
कुछ में केवल जाल ।
ये अनजान नदी की नावें
जादू के से पाल
उड़ातीं
आतीं
मन्थर चाल ।
</poem>